अवसादित जीवन की आवाज: एक ओजस्वी कविता”

जीना बिना लक्ष्य के, वह अजीवन सा आवास,
साहित्य बिना प्रेम के, थमा रहे अध्यान का विलास।
समाज जहाँ नारी को, छूने न पाए सम्मान का स्वाद,
ग्रंथ जो हैं अंधकार में, मार्गदर्शन से रौंगत न बदले रात्रि का वाद।

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