लबों पर रुकी बातें, हम जानते हैं,
आपका आभास है, हम मानते हैं।
इतना अल्फ़ाज़ दिल से कहना मुश्किल,
आपका शुक्रिया, हम मानते हैं।
सभी हैं यहाँ, पर कोई अपना नहीं,
आपकी मौजूदगी से, हम रोज़ाना जुदा हैं।
नगर में अजनबी, हमारा नाम बस ऐसा है,
एक ऐसा घर जो, हम अपना कहते हैं।
आपकी शायरी में छुपा है बहुत कुछ,
आपके अंदाज में ही, हम पहचानते हैं।
इश्क की मिसाल, दिल को छू जाती है,
हमारा कातिल, हमें रहबर मानते हैं।