बुराई की मक्खी: एक सकारात्मक खोज”

इंसान का दिल जख्मों से भरा,
बुराई की राहों में खो जाता है।
मक्खी की तरह तलाशता है वह,
जिस्म की सौंदर्य को छोड़ कर, दर्द पर है विचारा।
हर एक क्षण में, उसका दिल बेहकता है,
खोजता है वह, चिरपिंग राहों में बहकर।
परंपराओं की जंजीरों में बंधा हुआ,
उसका मन हकीकत की ऊँचाईयों की ऊँचाई पर बढ़ता है।
सौंदर्य से नहीं, बल्कि समझदारी से मोहब्बत है,
वह बुराई को हर कदम पर चुनौती देता है।
जिंदगी की राहों में, रौंगतें बिखेरता है,
खुद को खोजता है वह, भले ही राहें हों चिरपिंग और कठिन।
मक्खी की तरह, छोड़ देता है वह,
सभी बुराई को, और हमेशा बना रहता है सकारात्मक राहों का चुनाव।

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