सुक्रवार व्रत कथा

सुक्रवार व्रत कथा
कहीं बहुत पुराने समय की बात है, एक गाँव में एक व्रतानुरागी भक्त रहता था जिसका नाम रमेश था। रमेश भगवान लक्ष्मी के प्रेमी थे और हमेशा उनकी कृपा में रहने के लिए प्रयासरत रहते थे।
एक दिन, रमेश को गाँव की आर्थिक समस्या से निराश होते हुए एक पुराने साधु ने उन्हें सुना। साधु ने रमेश से कहा, “तुम लक्ष्मी पूजा के लिए हर सुक्रवार को व्रत रखो, और भगवान लक्ष्मी की कृपा पाओगे।”
रमेश ने साधु की सलाह मानी और हर सुक्रवार को लक्ष्मी पूजा का व्रत रखने का निर्णय किया। उन्होंने प्रतिवर्ष सुक्रवार को लक्ष्मी माता की पूजा में लगने लगे।
धीरे-धीरे, रमेश की आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा। लक्ष्मी माता की कृपा से उनके घर में धन-धान्य का आगमन हुआ और उनकी समस्याएं दूर हो गईं।
एक सुक्रवार को, जब रमेश लक्ष्मी पूजा कर रहे थे, भगवान लक्ष्मी खुद प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा, “तुम्हारी निष्ठा और भक्ति ने मेरी भावनाओं को हिला दिया है। मैं तुम्हें धन, समृद्धि, और सुख-शांति के साथ आशीर्वाद देती हूँ।”
इसके बाद से रमेश का जीवन सुख-शांति से भरा रहा और उनका आर्थिक स्थिति में सुधार हो गया। वह गाँववालों को भी अपनी कृपा में शामिल करते हुए समृद्धि की ओर बढ़ते गए।
इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है कि सुक्रवार के व्रत से भगवान लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सकती है, और आर्थिक समस्याओं में सुधार हो सकता है। यह व्रत धन, समृद्धि, और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए सार्थक हो सकता है।

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