चलो कुछ यादें ताज़ा करें, पुराने दरवाजे खोलें,
जहाँ हंसी की बारात थी, अब ख़ामोशी के झूले।
वो गलियां जिनमें दौड़ते थे, सपनों के पीछे हम,
क्या वहां अब भी खिलती है, बचपन की वो नरम छम।
दरवाजे पे जब खटखट होगी, कौन भागकर आएगा,
क्या वो दोस्त वही होगा, जो गले से लग जाएगा।
सवाल करेंगे सब हालात का, और जवाब में मुस्कान देंगे,
या घड़ी देखकर हाथ जोड़, हमें विदा का पैगाम देंगे।
कहीं वो किस्से, वो कहानियां, अब भी धूल में सोती हैं,
या उन यादों के कोने-कोने में नई सफलताएं रोती हैं।
चलो चलें, उन राहों पर जो, हम पीछे छोड़ गए,
जहाँ रिश्ते मोम थे कभी, क्या अब वो भी कठोर हुए।
नहीं ज़रूरी हर जवाब मिले, या अपनेपन की वही खुशबू आए,
पर कम से कम वो पल तो लौटे, जो वक़्त हमसे छीन ले जाए।
तो चलो कुछ पुराने दरवाजे खटखटाएं,
पुराने रिश्तों की आग में कुछ नए पल जलाएं।