साथ चलने की उम्मीद


वह एक नहीं, ना जाने कितने रास्ते से आती है घूम
तिनका-तिनका टूटे-फूटे को साथ लाती हैं
मिल जाये कुछ क़ीमती, इस ललक में आगे बढ़ती है
कभी प्लास्टिक तो कभी लोहा को साथ ले जाती है
तन को ढंके है, उनके फटे पुराने कपड़े
पैरों में है घिसे-पिटे चप्पल, बाल उलझे हुए
फिर भी काम करने की उमंग देखो
आता है सरपत, कंधा में लादे थैला
दो रोटी के लिए, भटकता दर- बदर
चेहरे पर रहता मायूसी के भाव
लोग रास्ते में मिल, मारते उन्हें ठोकर
फिर भी कार्य को तत्पर
देखा है हमने यहां, वहां हर एक मोड़ पर
दो रास्तों के जोड़ पर
सदैव रहती अग्रसर, भिक्षु के जीवन से अच्छा
कर्म पर विश्वास करती सच्चा


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

©2024 SAIWEBS WordPress Theme by WPEnjoy