भाग्य से भी ऊंचा

भाग्य से भी

ऊंचा कर्म है,

जो

स्वयं के हाथों में है।

 

क्यों ढूँढें सितारों में निशान,

जब राह खुद हम बना सकते हैं?

हर कदम पर,

कर्म ही दीपक है,

जो अंधेरों को मि

टा सकता है।