खंडहर में रोने वाली दीवार के सामने हमारा घर

खंडहर में रोने वाली दीवार के सामने हमारा घर

खंडहर की दीवारें फुसफुसाती कहानियां,
वक्त के निशान, बिखरी पुरानी निशानियां।
टूटे पत्थरों से झांकता अतीत,
हमारा घर वहीं, जैसे किसी सदी का गीत।

रोती दीवारें, जैसे किसी दर्द का सुर,
उनके साये में खड़ा हमारा नन्हा सा घर।
सांस लेता उम्मीदों की हर एक लौ,
जैसे राख से उठता हो कोई परिंदा नया।

वो दीवारें जो गवाह हैं समय के जख्मों की,
हमारा घर है साक्षी नए सपनों की।
वो टूटती ईंटें, जो बयां करती हैं हार,
हमारा आंगन गूंजे, बच्चों की खिलखिलाहट बार-बार।

खंडहर से उठती है चुप्पी की चीख,
हमारे घर में बजती है प्रेम की संगीत।
एक ओर इतिहास का थका हुआ पहरा,
दूसरी ओर हमारे भविष्य का सुनहरा चहेरा।

खंडहर की दीवारें होंगी मिट्टी में दबी,
हमारे घर से उठेगी आशा की रबी।
समय का ये खेल, दोनों को सहना है,
खंडहर को मरना, हमें फिर से जीना है।