ख़ामोश रहकर कर्म जो करते,
जीवन के पथ पर आगे बढ़ते।
बिना शब्दों के दुआएं सजतीं,
सपनों की राहें खुद ही बनतीं।
जब दुआएं बोलें, सुर में घुल जाएं,
ज़िंदगी की वीणा मधुर गुनगुनाए।
हर कदम पर रोशनी मुस्काए,
अंधेरे भी तब नज़ारे दिखाएं।
गलीयों में छांव, धूप न आए,
सड़कों पर सूरज खुद को सजाए।
जीवन की यही तो सच्चाई है,
हर कोना अपनी परछाई है।
सपनों को थामे चलना सिखो,
हर बंधन को चुपचाप लिखो।
जो खामोशी में गूंज उठे,
वही ज़िंदगी का संगीत बने।
सौरभ की कलम से यह वाणी,
सुन लो, समझो, हरदम निभानी।
कर्म की धारा जो बहती जाए,
दुआओं की लहरें संग बहा ले जाए।