“मैं यमुना हूँ”

 

“मैं यमुना हूँ”

 

मैं यमुना हूँ, इतिहासों की साक्षी,

कृष्ण की बंसी की मधुर अभिलाषी।

कभी मेरी लहरों में जीवन था बहता,

अब कचरे का भार मैं हर दिन सहता।

 

काले पानी में घुल गए सपने,

झागों में छिपे हैं ज़हर के अपने।

मंदिरों में पूजन, पर दिल में मलाल नहीं,

मुझसे प्रेम है, पर सफाई का ख्याल नहीं।

 

उद्योगों ने मुझमें विष घोला,

नालियों ने मुझको गंदा बोला।

श्रद्धा में बह कर लोग मुझे पूजते,

पर व्यवहार में क्यों मुझे रोज़ दूषित करते?

 

मैं रोती हूँ, पर मेरी आहें अनसुनी,

कहाँ गई वो संस्कृति, वो भावना सजीव धनी?

मुझे नहीं चाहिए फूलों की भीड़,

बस थोड़ी सी समझ और सेवा की पीड़।

 

आओ! मिलकर कदम बढ़ाएँ,

यमुना को फिर से पावन बनाएँ।

ना बहाएँ प्लास्टिक, ना ज़हर गिराएँ,

प्रकृति की इस धरोहर को फिर मुस्कुराएँ।