कहते हैं, बेटों की आवश्यकता नहीं,
पर सोचो, क्या ये सच्ची बात सही?
वो हाथ जो थामे बुढ़ापे की लाठी,
वो साहस जो बनाए संकल्प की माटी।
बेटों में है बल, संकल्प की ज्योति,
कभी नहीं बुझती उनकी कर्म की रोशनी।
परिवार की नींव में वो हैं ईंटें,
जीवन की धारा में वो ही हैं रीढ़ें।
पर मत भूलो, बेटी भी अनमोल है,
उसके बिना घर का सपना अधूरा गोल है।
पर ये कहना कि बेटों की जरुरत नहीं,
समाज की धारा में ये सोचना सही नहीं।
बेटों से चलता है वंश का रथ,
उनके बिना अधूरा है जीवन का पथ।
जरुरत है सबकी, बेटा हो या बेटी,
दोनो से सजती है घर की माटी।
कर्म की राह पर बेटों का साथ,
बनता है घर का, समाज का विश्वास।
तो ये कहना, बेटों की जरुरत नहीं,
सही मायनों में ये बात सही नहीं।
बेटा और बेटी दोनों हैं जरूरी,
दोनो मिल क
र लिखते हैं परिवार की दूरी।