**”फुर्सत”**
फुर्सत नहीं है इंसान को इंसान से मिलने की,
ख्वाहिश रखता है दूर बैठे भगवान से मिलने की…
दौड़ते पलों की भीड़ में ये दिल तनहा हो गया,
जिसे अपना कहते थे, वो भी एक सफ़र बन गया…
मस्जिद-मंदिर ढूँढ़ता फिरे, पर पड़ोसी का दर न जाने,
दुआएँ माँगता आसमान से, पर माँ का आँचल भूल जाने…
क्यों यूँ हमने रिश्तों को खोया, बिना किसी ग़म के?
एक चाय की चुस्की भी अब बन गई है मोहलत के…