बारिश: एक हास्य व्यंग
बारिश आई, जैसे कोई मेहमान,
चाय-पानी की थाली ले आई हर कान।
छत पर टपकती बूँदें, कर रही थीं भव्य नृत्य,
लोगों के घर के आँगन में बजी मूसलधार संगीत।
सड़क पर पानी, जैसे किसी ने धारा बहाई,
जूतों की खोज में सब, बस्ते में न गुम जाएं!
ऑटो में छाता, हाथ में स्लिपर,
ड्राइवर बोला, “गाड़ी नहीं चलेगी, मौसम है गड़बड़!”
गली में तैरते कागज के नाव,
बच्चे खुश, जैसे मिला हो स्वर्ग का ठाव।
बड़े-बुजुर्ग बोले, “ध्यान रखो, ये बारिश का खेल,
सफर हो गया दूभर, सब कुछ लगा है बेरोज़गार!”
छत की दरारें, जी हां, चुपके-चुपके इशारा कर रही हैं,
“हमने तो पहले ही चेताया था, घर को बनाओ पक्का!”
बारिश आई, सजीव फिल्म का तमाशा दिखलाया,
पर हर कोई सोच रहा था, “कब
तक ये मेला चलेगा?”